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प्रिय मित्रों मानव जीवन को आनंदित एवं समृद्ध बनाने के लिए हमें कुछ भी अति साहसिक करने की जरूरत नहीं है। हमारी संस्कृति में ऐसी कई बातें हैं जिनका अनुसरण करके हम बहुत ही साधारण से लग रही बातों को अपने जीवन में अनुसूचित करके असाधारण आयुष जी सकते हैं। आज के इस लेख में हम परोपकार के बारे में जानेंगे। आप इसे |परोपकार पर निबंध, |essay on philanthropy in Hindi भी कह सकते हैं।
परोपकार पर निबंध
| essay on philanthropy |paropkar in hindi
निबंध क्रमांक 1
परोपकार का सबसे बड़ा लाभ आत्मसंतुष्टि है। परोपकार से आत्मा को शांति मिलती है कि, मैंने यह कार्य दूसरों के कल्याण के लिए किया है। दान निस्वार्थ भाव से किया जाता है, लेकिन बदले में परोपकारी प्राणी को वह संपत्ति मिल जाती है जिसे लाखों रुपए देकर भी नहीं खरीदा जा सकता वह संपत्ति है ,मन का सुख ।जीवन में दान का बहुत महत्व है।
परोपकार शब्द की व्युत्पत्ति" पर और उपकार " शब्द से हुई है जिसका अर्थ है दूसरों पर किया जाने वाला उपकार। जो दान देने में कोई भी स्वार्थ नहीं होता उसे ही सच्चा दान कहा जाता है। दान को सबसे बड़ा धर्म कहा गया है। दान करने से हमारे मन में करुणा एवं सेवा भाव जागृत रहता है। जब किसी व्यक्ति में करुणा की भावना होती , है तो वह परोपकारी भी होता है।
किसी व्यक्ति की सेवा करना या उसे किसी प्रकार की सहायता देना इस क्रिया को परोपकार कहते हैं। हम परोपकार किसी भी स्थिति में कर सकते हैं ।परोपकार करने के लिए हमें बहुत ही धनवान होने की कोई भी जरूरत नहीं। गर्मी के मौसम में राहगीरों को मुफ्त ठंडा पानी देना या किसी गरीब के बेटी की शादी में योगदान देना यह भी परोपकार ही हो सकता है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि किसी की मदद करना और उस मदद के बदले में कुछ ना मांगना दान या परोपकार कहलाता है। दुनिया में बहुत से लोग हैं जो दूसरों की मदद करते हैं और भारत में कहीं ना कहीं यह बहुत ही ज्यादा है।
कहां जाता है कि हम दूसरों की मदद कर सके इसीलिए हमें मानव जन्म मिलता है। हमारा जन्म तभी सार्थक कहा जाता है जब हम अपनी बुद्धि, विवेक, कमाई या ताकत के बल पर दूसरों की मदद करते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि जिसके पास धन हो या जो धनवान हो वही दान दे सकता है साधारण व्यक्ति भी अपनी बुद्धि के बल पर किसी की सहायता कर सकता है यह सब समय की बात है कि किसे इसकी आवश्यकता है यानी जब कोई जरूरतमंद हमारे सामने हो तो हम जो बन सकते हैं उसके लिए करना चाहिए यह एक जरूरतमंद जानवर के साथ साथ इंसान भी हो सकता है।
हमारे भीतर हमें परोपकार की यह भावना जगा कर मनुष्य जीवन को सार्थक करना ही होगा अन्यथा इस संसार में लाखों जीव जन्म लेते हैं और पुनः नष्ट भी हो जाते हैं। भगवान
ने हमें इस दुनिया में प्यार बांटने के लिए ही भेजा है लेकिन हम अपना मूल स्वरूप भूल चुके हैं और स्वार्थ में लोलुप होकर परोपकार भूल ही गए हैं। मैं आशा करता हूं आज उससे आप ही अपने जीवन में परोपकार करना शुरू कर देंगे ।यह तो हमारे जीवन की विशेषता है धन्यवाद।
निबंध क्रमांक 2
परोपकार पर निबंध |paropkar essay in hindi
दान एक ऐसी भावना है जिसे हर किसी को अपने में सहेज कर रखना चाहिए। परोपकार को प्रत्येक व्यक्ति को एक आदत के रूप में विकसित करना चाहिए। परोपकार एक ऐसी भावना है जिसके तहत व्यक्ति यह भूल जाता है कि उसका हित क्या है ,और नुकसान क्या है ।वह खुद की परवाह किए बिना निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता है और कभी भी इस बारे में बात नहीं करता है कि उसे बदले में कुछ मिलता है या नहीं।
हमारी भारतीय संस्कृति इतनी समृद्ध है कि यहां बच्चों को बचपन से ही परोपकार की बातें सिखाई जाती है। हम अपने बड़ों से परोपकार के बारे में सुनते रहे हैं और इतना ही नहीं इससे जुड़ी कई कहानियां हमारी पौराणिक किताबों में भी लिखी गई है। हम गर्व से कह सकते हैं कि यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। हमारे शास्त्रों में दान के महत्व को बखूबी दर्शाया गया है। हमें अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए यानी परोपकार को नहीं भूलना चाहिए।
परोपकार का विलोम क्या होगा?
परोपकार का विलोम अपकार होगा।
परोपकारी व्यक्ति का कल्याण कैसे होता है?
परोपकार करने की भावना याने के लोक कल्याण की भावना होती है। परोपकार का अर्थ है दूसरों पर उपकार करना। जब हम किसी की मदद करते हैं या दूसरों की भलाई के लिए कार्य करते हैं तब हमें आत्म संतुष्टि का अनुभव मिलता है। और इसी आत्म संतुष्टि के कारण हम अपने कार्य भी बहुत ही मेहनत और लगन से करते हैं और उसी के कारण हमें जीवन में यश भी मिलता है।
परोपकार की भावना से क्या मिलता है?
हमारी रोज की जिंदगी में हमने ऐसा बहुत बार देखा कि बहुत पैसे कमाने के बाद भी कोई व्यक्ति सुखी नहीं दिखाई देता। इसका कारण है कि उसने संपत्ति तो बहुत कमाली लेकिन वह अंदर से आत्मा संतुष्ट नहीं है। परोपकार के भावना से हमें आत्म संतुष्टि का अनुभव होता है। और यही आत्म संतुष्टि हमारे चेहरे पर आनंद एवं जीवन में सुख लाती है।
आज के दौर में प्रगति के नाम पर आगे बढ़ने की होड़ में हम लोग इस कदर व्यस्त हो गए हैं कि परोपकार जैसे पुण्य काम हमारे ध्यान में भी नहीं आते। मशीनों के दुनिया में काम करते हुए इंसान भी मशीनों के भांति ही भावना विहीन हो गया है। हम जिंदगी में कितना भी धन संपत्ति कमाले परंतु हमारे अंदर यदि परोपकार की भावना नहीं होगी तो यह धन-संपत्ति हमें आनंद नहीं दे सकेगी। आदमी जब दुनिया में आता है तब अकेला ही आता है और मरने के बाद भी अकेला ही जाता है। वह अपने साथ कुछ भी लेकर नहीं जा सकता। लेकिन देख कर बहुत खूब जा सकता है।
इसलिए जब तक हम जीवित हैं हमें परोपकार के माध्यम से दुनिया को प्यार बांटना चाहिए। यही मानव जीवन की संपूर्णता होगी। धन्यवाद।
परोपकार की भावना के लिए अनिवार्य तत्व क्या है?
अगर हम हमारे मन में कोई कपट लेकर किसी को मदद करते हैं तो इसे हम परोपकार नहीं कह सकते। परोपकार की भावना के लिए अनिवार्य तत्व है निस्वार्थ होना स्वार्थहिन बनना। अर्थात बिना किसी स्वार्थ भावना के दूसरों की मदद करना ही परोपकार की भावना के लिए अनिवार्य तत्व है।
परोपकार संकेत बिंदु आवश्यकता लाभ जीवन में कितना संभव?
हम जिस प्रकृति का एक अभिन्न अंग है उसके कंकण में परोपकार भरा हुआ है। प्रकृति हमें नित् रूप से परोपकार की शिक्षा देती है। नदिया पेड़ पौधे यह हम पर हमेशा से ही परोपकार करते आए हैं। नदिया अपना जल सभी को देती है। वृक्ष भी जिसने उसे लगाया और जो उसे काट रहा है दोनों को शीतल छाया प्रदान करते हैं। परोपकार से हमारा हृदय विशाल बनता है।
जीवन में परोपकार का क्या महत्व है?
यदि हम किसी वृक्ष को देखें तो हमें बहुत ही आनंद का अनुभव होता है। गर्मी से तप कर जब हम किसी वृक्ष की छाया में बैठते हुए तो हमें बहुत ही समाधान प्राप्त होता है। पेड़ हमें छाया के साथ-साथ फूल फल और लकड़ी औषधि सभी देते हैं। इसी के कारण वृक्ष को पवित्र माना जाता है ,क्योंकि वह अपने संपूर्ण जीवन काल में परोपकार करते रहते हैं। परोपकार का सबसे बड़ा लाभ यह है कि हमें आंतरिक सुख शांति एवं समाधान मिलती है, ऐसा समाधान जो हम लाखों रुपए देकर भी खरीद नहीं सकते। हमारे अंदर परोपकार के कारण निस्वार्थ भाव से काम करने की वृत्ति जागृत होती है।
परोपकार दिवस कब मनाया जाता है?
अंतर्राष्ट्रीय परोपकार दिवस प्रतिवर्ष 5 सितंबर को मनाया जाता है।
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